अगर भारत और अमेरिका 2024 का ईमानदारी से जायजा लें, तो ये एहसास जरूर होगा कि ये साल तरक्की और मुश्किलों, कामयाबियों और झटकों, निकटता और मुकदमों का मिश्रण रहा। ये ग्राफ सीधा ऊपर नहीं गया, बल्कि ऊपर-नीचे हुआ। ऊपर से दोनों देशों के बीच बहुत अच्छे रिश्ते रहे। अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को डेलावेयर स्थित अपने घर पर द्विपक्षीय बैठक और क्वॉड समिट के लिए बुलाया। दोनों नेताओं ने आपसी रिश्तों की बड़ी तारीफ की और एक-दूसरे की पीठ थपथपाई।
लेकिन अमेरिकी ब्यूरोक्रेसी के लिए मुश्किलें भी थीं। चाहे वह खालिस्तानी तत्वों को प्रोत्साहित करना हो या या बांग्लादेश की अंतरिम सरकार को मनमाना काम करने की पूरी छूट देना।
ऐसा लग रहा था कि भारत-अमेरिका के रिश्ते दो अलग-अलग रास्तों पर चल रहे थे। इस अनपेक्षित दोहरे रवैये ने दोनों साझेदारों के बीच विश्वास को कमजोर किया। एक टूटती दुनिया में, जहां समान सोच वाले देशों के बीच विश्वास बेहतर सहयोग के लिए जरूरी चाबी है, अमेरिका के दुश्मनी भरे कदम और भारत के पड़ोस पर उसकी नीतियों में मतभेद अच्छे संकेत नहीं देते।
भारत की सत्ताधारी व्यवस्था के कुछ हिस्से बाइडेन प्रशासन के मिश्रित संकेतों से बहुत निराश हैं। कई लोग, शायद भोलेपन से ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने का इंतजार कर रहे थे। वे कहते हैं कि ट्रम्प के साथ भारत को कम से कम पता तो होगा कि उसकी क्या स्थिति है। हो सकता है, लेकिन नई दिल्ली को याद रखना चाहिए कि ट्रम्प अप्रत्याशित हैं और ट्रूथ सोशल पर एक पोस्ट गिरते ही उनके आकलन और समझ बदल सकते हैं।
बाइडेन के कार्यकाल के दौरान, रक्षा विभाग ने कई सकारात्मक कदम उठाए। इनोवेटिव Indus-X कार्यक्रम के तहत भारतीय स्टार्ट-अप्स के साथ सहयोग को बढ़ावा दिया। इसने टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और भारत में GE इंजन के सह-उत्पादन को आगे बढ़ाया, जो अभूतपूर्व था।
दूसरी तरफ, बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमलों के बढ़ते जाने पर अमेरिकी विदेश मंत्रालय चुप रहा। स्थानीय प्रेस ने मंदिरों और भारतीय सांस्कृतिक केंद्रों पर आगजनी की खबरें दीं। रोजाना ब्रीफिंग में शेख हसीना के मानवाधिकार रेकॉर्ड की आलोचना करने के बाद, विभाग के प्रवक्ता उनके हटने के बाद खामोश हो गए। ऐसा लग रहा था कि उन्होंने बांग्लादेश से नजरें फेर लीं। अंतरिम सरकार के अधीन हिंसा और उसके कट्टर इस्लामी झुकाव की कोई निंदा नहीं हुई।
एक तरफ भारत-अमेरिका के रक्षा संबंधों में 31 सशस्त्र MQ-9B उच्च-ऊंचाई वाले ड्रोन की बिक्री के साथ महत्वपूर्ण प्रगति दर्ज की गई। वहीं, भारतीय उद्योगपति गौतम अडाणी पर चौंकाने वाला अभियोग भी लगाया गया। यह आरोप बाइडेन के पद छोड़ने से ठीक दो महीने पहले लगाया गया।
गौतम अडाणी हवाई अड्डों, बंदरगाहों, खनन और ग्रीन एनर्जी में हिस्सेदारी वाली एक समूह के प्रमुख के रूप में केवल भारत के सबसे अमीर व्यापारी ही नहीं हैं। उन्हें मोदी के करीबी भी माना जाता है। अडाणी पर हमला, मोदी के समर्थकों को प्रधानमंत्री पर हमला लगता है। हालांकि भारतीय सरकार अडाणी पर अमेरिकी आरोप के इस मामले से दूर ही रही है, लेकिन BJP पार्टी तंत्र के माध्यम से अमेरिका के इस कदम के खिलाफ गुस्सा व्यक्त किया जा रहा है। भारत में कई लोगों का मानना है कि अमेरिकी व्यवस्था के कुछ लोग भारत को उभरता हुआ नहीं देखना चाहते और शक्तिशाली तत्व हमेशा मजबूत रिश्तों के रास्ते में रोड़े अटकाते रहते हैं।
अडाणी पर लगा अभियोग उन उपलब्धियों को मिटा गया जिसे दोनों तरफ के कूटनीतिज्ञों ने पूरे साल भारत-अमेरिका साझेदारी के रूप में सजाया था। अडाणी ने सभी आरोपों का खंडन करते हुए कहा है कि 'हर हमला हमें और मजबूत बनाता है।' अडाणी के खिलाफ यह कार्रवाई उस समय हुई जब भारत पहले से ही अमेरिका में रहने वाले एक खालिस्तानी के खिलाफ कथित 'हत्या-के-लिए-किराये' की साजिश को भूलने की कोशिश कर रहा था। इस मामले में आरोप है कि भारतीय एजेंटों ने घोषित आतंकवादी गुरपतवंत पन्नू की हत्या के लिए एक हत्यारे को किराए पर लेने की कोशिश की। लेकिन यह साजिश नाकाम हो गई। कथित आरोपी एक अमेरिकी गुप्त एजेंट निकला।
हालांकि बाइडेन प्रशासन ने इस मामले को बड़े रिश्ते से अलग करने और भारत के साथ उच्च-स्तरीय द्विपक्षीय जुड़ाव जारी रखने की कोशिश की। लेकिन इस घटना ने पहले से ही अमेरिकी मंशा पर शक करने वालों पर गहरा असर डाला। वे कथित हत्या की साजिश को नई दिल्ली के सुरक्षा प्रबंधकों की भूल नहीं मानते, जिन्होंने एक बेतुकी योजना बनाई और फिर खुफिया जाल में फंस गए। वे अमेरिका को अपनी धरती पर खालिस्तानियों को नजरअंदाज करने और उन्हें रोकने के लिए कोई कार्रवाई न करने के रूप में देखते हैं।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कई भारतीय इस बात से नाराज हैं कि अमेरिका में रहने वाले पन्नू जैसे आतंकवादी किस तरह से बेधड़क होकर भारतीय राजनयिकों और हिंदुओं के खिलाफ हिंसा का खुलेआम समर्थन करते हैं। इसके बावजूद अमेरिकी अधिकारी कुछ नहीं करते। हिंसक बयानबाजी को 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' के तौर पर बताया जाता है। यह रवैया भारत सरकार और आम लोगों दोनों को चिढ़ाता है। क्योंकि यह भारत की सुरक्षा चिंताओं के प्रति उदासीनता का संकेत है।
भारत-अमेरिका के रिश्ते अब दो अभियोगों से दब रहे हैं, जिनको संभालने की जरूरत है। नहीं तो यह रिश्ते को और कमजोर कर सकते हैं। दो कदम आगे और दो कदम पीछे किसी भी पक्ष के लिए अच्छा नहीं हो सकता।
(लेखिका सीमा सिरोही वॉशिंगटन डीसी स्थित एक स्तंभकार हैं जो विदेश नीति में विशेषज्ञता रखती हैं। वह 'फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स-द इंडिया-यूएस स्टोरी की रचनाकार भी हैं। इस लेख में व्यक्त विचार और राय लेखिका के हैं और जरूरी नहीं कि ये न्यू इंडिया अब्रॉड की आधिकारिक नीति या रुख को दर्शाते हों)
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