अपà¥à¤°à¥ˆà¤² में à¤à¤¾à¤°à¤¤ के अलग-अलग हिसà¥à¤¸à¥‡ सौर नव वरà¥à¤· मनाया जा रहा है। इस दौरान मनाठजाने वाले जशà¥à¤¨ का खेती का गहरा संबंध है। हर कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°, अपनी जलवायॠऔर परंपराओं के साथ अपने मेहनत के फलों का जशà¥à¤¨ मनाता है। ये तà¥à¤¯à¥‹à¤¹à¤¾à¤°, जो अकà¥à¤¸à¤° फसल काटने के मौसम से जà¥à¤¡à¤¼à¥‡ होते हैं, देश की जड़ों को खेती से जà¥à¤¡à¤¼à¥‡ होने की पà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ करते हैं।
वैशाखी: पंजाब के सà¥à¤¨à¤¹à¤°à¥‡ खेत
पंजाब और उतà¥à¤¤à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤ में वैशाखी रबी (सरà¥à¤¦à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की) फसल चकà¥à¤° के अंत की दहलीज है। किसान, जिनके खेत हवाओं में लहराते सà¥à¤¨à¤¹à¤°à¥‡ गेहूं के समंदर जैसे लगते हैं, अपनी मेहनत का जशà¥à¤¨ मनाते हैं जब फसल घर आती है। दालों, तिलहन और गनà¥à¤¨à¥‡ के साथ गेहूं वैशाखी का मà¥à¤–à¥à¤¯ आकरà¥à¤·à¤£ है। ये तà¥à¤¯à¥‹à¤¹à¤¾à¤° पà¥à¤°à¤•ृति के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ का à¤à¤• खà¥à¤¶à¥€ à¤à¤°à¤¾ उतà¥à¤¸à¤µ है। पà¥à¤°à¥à¤· और महिलाà¤à¤‚ उरà¥à¤œà¤¾à¤µà¤¾à¤¨ à¤à¤¾à¤‚गड़ा और गिदà¥à¤¦à¤¾ नृतà¥à¤¯ करते हैं, जिनकी चालें सफल फसल की लय को दरà¥à¤¶à¤¾à¤¤à¥€ हैं।
विशà¥: केरल की समृदà¥à¤§à¤¿
केरल में विशॠकी शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ विशà¥à¤•à¥à¤•णी की पहली à¤à¤²à¤• से होती है। यह मौसमी फसलों का à¤à¤• शà¥à¤ संगà¥à¤°à¤¹ है। इनमें से कणिवेलारी (सà¥à¤¨à¤¹à¤°à¥€ ककड़ी) समà¥à¤®à¤¾à¤¨ की जगह रखता है। पहले ये ककड़ी उतà¥à¤¤à¤°à¥€ केरल से आती थी, लेकिन इस साल तिरà¥à¤µà¤¨à¤‚तपà¥à¤°à¤® के कलà¥à¤²à¤¿à¤¯à¥‚र के किसानों ने à¤à¥€ इसे उगाना शà¥à¤°à¥‚ कर दिया है। ये तà¥à¤¯à¥‹à¤¹à¤¾à¤° धान, नारियल और मौसमी सबà¥à¤œà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की कटाई के साथ à¤à¥€ मेल खाता है, जो समृदà¥à¤§à¤¿ की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ को और बढ़ाता है।
बोहाग बिहू: असम के धान के खेत
असम के लिठबोहाग बिहू या रोंगाली बिहू सिरà¥à¤« नव वरà¥à¤· का सà¥à¤µà¤¾à¤—त नहीं है। यह सबसे महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ फसल - धान की तैयारी का समय है। ये तà¥à¤¯à¥‹à¤¹à¤¾à¤° बीज बोने के मौसम की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ का संकेत है, जब किसान चावल की खेती के लिठअपने खेत तैयार करते हैं। जशà¥à¤¨ में पारंपरिक पकवान जैसे पिठा और लारू (चावल और नारियल से बने) खास जगह रखते हैं। साथ ही आदिवासी समà¥à¤¦à¤¾à¤¯à¥‹à¤‚ के पारंपरिक पेय जैसे आपोंग और चूजे à¤à¥€ उतà¥à¤¸à¤µ का हिसà¥à¤¸à¤¾ हैं।
गà¥à¤¡à¤¼à¥€ पड़वा: आम का मौसम शà¥à¤°à¥‚
महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤° में गà¥à¤¡à¤¼à¥€ पड़वा रबी की फसल पूरी होने और फलों के राजा आम के आगमन का पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• है। यही वो मौसम है जब बाजारों में पके अलà¥à¤«à¤¾à¤‚सो आमों की बहार होती है, जिनकी खà¥à¤¶à¤¬à¥‚ समृदà¥à¤§à¤¿ और खà¥à¤¶à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का संकेत देती है। आम के साथ ही, सरà¥à¤¦à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की फसल से निकली दालें और अनाज à¤à¥€ जशà¥à¤¨ के खाने में शामिल होते हैं।
पना संकà¥à¤°à¤¾à¤‚ति
ओडिशा में पना संकà¥à¤°à¤¾à¤‚ति (महा विषà¥à¤µ संकà¥à¤°à¤¾à¤‚ति) ओडिया नव वरà¥à¤· और महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ फसलों की कटाई की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ का दिन है। मà¥à¤–à¥à¤¯ फसल धान के साथ गेहूं, मूंग और तूर जैसी दालें, सरसों और तिल जैसे तिलहन, और कदà¥à¤¦à¥‚-लौकी जैसी मौसमी सबà¥à¤œà¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ तैयार होती हैं। आम, कटहल और बेल (बेलफल) जैसे फल à¤à¥€ जरूरी à¤à¥‚मिका निà¤à¤¾à¤¤à¥‡ हैं। बेल का रस इस तà¥à¤¯à¥‹à¤¹à¤¾à¤° में विशेष चढ़ावा होता है।
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