बे à¤à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ में पली-बढ़ी मैं, à¤à¤¾à¤°à¤¤ के अनेक रंगों को अपने सà¥à¤•ूल की गलियों में चलते हà¥à¤ देख सकती थी। मेरे दकà¥à¤·à¤¿à¤£ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ दोसà¥à¤¤, जिनके घरों में मैं गोलू के लिठआमंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ होती थी, मेरे पंजाबी फà¥à¤Ÿà¤¬à¥‰à¤² टीम के साथी, और गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤à¥€ सहपाठी जो मà¥à¤à¥‡ सà¥à¤•ूल गरबा में नाचना सिखाते थे — हर कोई अपनी परंपराओं और अपने-अपने नववरà¥à¤· उतà¥à¤¸à¤µà¥‹à¤‚ को लेकर चलता था।
मैं विशेष रूप से मलयाली नववरà¥à¤· विशॠके सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ सदà¥à¤¯ का इंतज़ार करती थी। लेकिन यहीं से यह समà¤à¤¨à¥‡ में उलà¤à¤¨ शà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤ˆ कि इतने सारे नाम और उतà¥à¤¸à¤µ à¤à¤• जैसे समय पर कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ आते हैं, पर उनके नाम अलग कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ होते हैं।
जब मैंने इस पर शोध किया, तो जाना कि à¤à¤¾à¤°à¤¤ में नववरà¥à¤· मनाने की परंपराà¤à¤‚ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯ और सांसà¥à¤•ृतिक विविधताओं के आधार पर अलग होती हैं, और अधिकतर हिंदू चंदà¥à¤° या चंदà¥à¤°-सौर कैलेंडर पर आधारित होती हैं। ये उतà¥à¤¸à¤µ नवजीवन, आà¤à¤¾à¤° और सांसà¥à¤•ृतिक पहचान का पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• होते हैं। अमेरिका में रहने वाले हिंदà¥à¤“ं और à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ अमेरिकियों के लिठये अपने जड़ों से जà¥à¤¡à¤¼à¥‡ रहने का à¤à¤• जरिया हैं, जो बहà¥à¤¸à¤¾à¤‚सà¥à¤•ृतिक जीवनशैली के बीच अपनी परंपराओं को बनाठरखने में मदद करते हैं।
उगादी का महतà¥à¤µ समà¤à¤¨à¥‡ के लिठमैंने अपनी दादी से लंबी बातचीत की, जो गहरे तेलà¥à¤—ॠमूल की हैं। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बताया,"यह à¤à¤• बहà¥à¤¤ शà¥à¤ समय होता है, अकà¥à¤¸à¤° इसे पहली फसल से जोड़ा जाता है। लेकिन उगादी अब इससे कहीं ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ बन चà¥à¤•ा है – यह नवीनीकरण का पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• है और जीवन के सà¤à¥€ पहलà¥à¤“ं को अपनाने का आमंतà¥à¤°à¤£ है।"
इस परà¥à¤µ की à¤à¤• खास परंपरा है – उगादी पचड़ी, à¤à¤• चटनी जिसमें जीवन के छह अलग-अलग à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं को दरà¥à¤¶à¤¾à¤¨à¥‡ वाले सà¥à¤µà¤¾à¤¦ होते हैं:
कचà¥à¤šà¤¾ आम – आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯
इमली – अरà¥à¤šà¤¿
नीम – दà¥à¤ƒà¤–
गà¥à¤¡à¤¼ – खà¥à¤¶à¥€
काली मिरà¥à¤š – ग़à¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾
नमक – डर
मैंने हाल ही में पहली बार यह पचड़ी चखी। सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ में अजीब संयोजन लगने वाले ये सà¥à¤µà¤¾à¤¦ à¤à¤•-दूसरे के साथ सामंजसà¥à¤¯ में थे। यह डिश जीवन के संतà¥à¤²à¤¨ पर सोचने को मजबूर करती है – हर à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ ज़रूरी है।
उगादी के दिन घरों को आम के पतà¥à¤¤à¥‹à¤‚, रंगोली और दीपों से सजाया जाता है। मंदिरों में जाकर लोग नठवरà¥à¤· की शà¥à¤à¤•ामनाà¤à¤‚ मांगते हैं। दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤à¤° में हिंदू परिवार पारंपरिक à¤à¥‹à¤œà¤¨ बनाते हैं, पूजा करते हैं और सांसà¥à¤•ृतिक कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤®à¥‹à¤‚ में à¤à¤¾à¤— लेते हैं।
गà¥à¤¡à¤¼à¥€ पड़वा, जो महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯à¤¨à¥‹à¤‚ के लिठनववरà¥à¤· है, समृदà¥à¤§à¤¿ और विजय का पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• होता है। घरों के बाहर "गà¥à¤¡à¤¼à¥€" – रेशमी कपड़े, फूलों की माला और उलà¥à¤Ÿà¤¾ मिटà¥à¤Ÿà¥€ का घड़ा लटकाया जाता है। पà¥à¤°à¤£ पोली और शà¥à¤°à¥€à¤–ंड जैसे पकवान बनाठजाते हैं। अमेरिका में बसे महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯à¤¨ समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ सामूहिक रूप से ये उतà¥à¤¸à¤µ मनाते हैं, जिससे à¤à¤• अपनापन और सांसà¥à¤•ृतिक जà¥à¤¡à¤¼à¤¾à¤µ महसूस होता है।
पंजाबियों के लिठबैसाखी नववरà¥à¤· और फसल उतà¥à¤¸à¤µ दोनों है। इस साल यह 14 अपà¥à¤°à¥ˆà¤² को पड़ रही है। यह सिखों के खालसा पंथ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ का à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• है। इस दिन नगर कीरà¥à¤¤à¤¨, कीरà¥à¤¤à¤¨, और सामà¥à¤¦à¤¾à¤¯à¤¿à¤• सेवा के ज़रिठशà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ और सेवा का à¤à¤¾à¤µ पà¥à¤°à¤•ट किया जाता है।
चैतà¥à¤° नवरातà¥à¤°à¤¿, जो हिंदू चंदà¥à¤°-सौर पंचांग के पहले दिन आती है, हर दिन शकà¥à¤¤à¤¿ के à¤à¤• रूप को समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ होता है। हमारे परिवार में इन दिनों मांसाहार से परहेज़ किया जाता है, जैसा कि बहà¥à¤¤ से हिंदू परिवारों में होता है।
चेती चाà¤à¤¦, सिंधी समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ मनाया जाने वाला तà¥à¤¯à¥‹à¤¹à¤¾à¤° है, जो उनके इषà¥à¤Ÿà¤¦à¥‡à¤µ à¤à¥‚लेलाल के जनà¥à¤® की सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ में मनाया जाता है। जब सिंध पर अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥€ मिरà¥à¤•शाह ने कबà¥à¤œà¤¼à¤¾ किया, तो सिंधियों ने वरà¥à¤£ देवता से पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ की, जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¥‚लेलाल के रूप में रकà¥à¤·à¤• का वादा किया। यह दिन नव आरंà¤, समृदà¥à¤§à¤¿ और आसà¥à¤¥à¤¾ का पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• बन चà¥à¤•ा है।
बोहाग बिहू या रोंगाली बिहू, असमिया नववरà¥à¤· और वसंत ऋतॠके आगमन का परà¥à¤µ है। यह फसल का जशà¥à¤¨ है और इसमें सांसà¥à¤•ृतिक कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤®à¥‹à¤‚, पारंपरिक à¤à¥‹à¤œ और बिहू नृतà¥à¤¯ के ज़रिठसमà¥à¤¦à¤¾à¤¯ à¤à¤•जà¥à¤Ÿ होता है।
इन तà¥à¤¯à¥‹à¤¹à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ की तारीखें à¤à¤²à¥‡ ही कैलेंडर पर अलग-अलग हों, लेकिन ये संसà¥à¤•ृति, इतिहास और परिवार से जà¥à¤¡à¤¼à¥‡ रहने का गहरा जरिया हैं। अमेरिका जैसे बहà¥à¤¸à¤¾à¤‚सà¥à¤•ृतिक समाज में रहते हà¥à¤ à¤à¥€, इन परंपराओं के ज़रिठहम अपनी जड़ों से जà¥à¤¡à¤¼à¥‡ रहते हैं, और अपनी अगली पीढ़ी को à¤à¥€ यही मूलà¥à¤¯ सौंपते हैं।
जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते हैं, ये उतà¥à¤¸à¤µ बदलते हैं लेकिन हमारे असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ का अहम हिसà¥à¤¸à¤¾ बने रहते हैं — हमारे अतीत और वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ के बीच सेतॠबनकर।
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